बेतिया राज इमामबाड़ा का इतिहास | History of Bettiah Raj Imambara in Hindi
Urdu Girls High School या बेतिया राज इमामबाड़ा वास्तव में यह इमामबाड़ा मुगल साम्राज्य के समय का एक ऐतिहासिक धरोहर है जो शिया लोगों के लिए बनाया गया.
कभी इस बिल्डिंग में उर्दू हाई स्कूल [ July 1961 To December 1972 ] हुआ करता था लेकिन आज इस इमामबाड़े में उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल [ जनवरी 1980 से अब तक ] चल रहा है.
हकीकत में बेतिया राज मुगल बादशाह शाहजहां के द्वारा स्थापित किया गया.(बेतिया राज का पूरा इतिहास पढ़ें)
इस शहर में कई प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर है जिनके बारे में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद नहीं है, लेकिन यह आलीशान इमारतें आज भी गवाह है.
उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल या बेतिया राज इमामबाड़ा पर यह जानकारी से भरा लेख आपके लिए विशेष रूप से प्रस्तुत है, क्योंकि इमामबाड़ा का अपना एक विशेष प्राचीन अस्तित्व है, इमामबाड़ा का इतिहास सबसे अलग एवं रोचक है......
बेतिया इमामबाड़ा जो लोग सिर्फ इस वजह से जानते हैं कि यहां मोहर्रम के दिनों में बेतिया राज की ताजिया रखी जाती है लोग यहां मन्नते मांगते हैं, यह ताजिया मोहर्रम की दसवीं तारीख तक ही रहता है.
बेतिया इमामबाड़ा सिर्फ मोहर्रम के हवाले से ही जाना जाता है जबकि हकीकत ठीक इसके अलग है इमामबाड़ा की एक बड़ी सी बिल्डिंग आज भी उसी तरह मौजूद है बरसों से बेतिया राज के द्वारा एक बड़ा सा ताजिया मोहर्रम के दिनों में रखा जाता है और 10 दिनों तक लोग यहां दिये जलाते हैं और फिर दसवे दिन यह ताजिया कर्बला में ले जाकर दफन कर दिया जाता है यह सिलसिला कब से चला आ रहा है.
इसके बारे में कुछ भी कहना मुमकिन नहीं है मोहल्ला किला वार्ड नंबर 20 में इमामबाड़े की बिल्डिंग आज भी उसी शान से मौजूद है इसकी इतिहास के सिलसिले में काफी तलाश करने के बाद जो जानकारी मिलती है वह कुछ यूँ है, इमामबाड़ा शब्द आते ही यह बात सामने आती है के शिया लोगों की इबादत गाह को इमामबाड़ा कहते हैं हकीकत भी यही है
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इस इमामबाड़ा की हकीकत यही है कि यह इमामबाड़ा शिया लोगों के लिए ही बेतिया के राजा ने बनवाया था जहां करीब 1980 तक शिया लोग मोहर्रम के दिनों में मातम करने के लिए आते थे हम इसके इतिहास की तरफ चलते हैं इमामबाड़ा की बाहरी दीवार के ऊपरी हिस्से में एक मीनार नुमा दीवार पर जो सबसे ऊंचाई पर है आज भी उर्दू में बेतिया राज इमामबाड़ा उसी तरह से लिखा हुआ मौजूद है.
बेतिया राज शब्द तो दिखाई देता है लेकिन उसकी बाईं ओर इमामबाड़ा उजड़ चुका है सबसे ऊपरी भाग में जो सामने के बीचो बीच है दो झंडे बने हुए हैं झंडे के दाहिनी ओर बेतिया राज और बाईं ओर इमामबाड़ा खुदा हुआ था जो आधा आज भी स्पष्ट दिखाई देता है.
बिल्डिंग सदियों पुरानी है जो सुर्खी से बनाई गई है इमामबाड़ा बेतिया के राजा के द्वारा शिया लोगों की इबादत के लिए बनाया गया था इमामबाड़े के मेन गेट के दाहिने पिलर पर एक स्लैब सटोन slab stone आज भी लगा हुआ है.
इसे शिलापट्ट के अनुसार इमामबाड़ा दिसंबर 1925 में दोबारा बनकर तैयार हुआ शिलापट्ट के पहले पंक्ति में यह स्पष्ट लिखा है की "किया था पहले महाराज ने जिसे तैयार " इसके अनुसार इमामबाड़ा के बनाए जाने की इतिहास 17वी सदी मानी जा सकती है पहले महाराज ने इसे बनाया था जो काफी पुराना होने के कारण बिल्डिंग की हालत बहुत खराब हो चुकी थी तब यहां के लोगों ने बेतिया राज के मैनेजर से मुलाकात की उस वक्त मैनेजर जी रदरफोर्ड थे उन्होंने ही इस इमामबाड़े को दोबारा बनाने को कहा इमामबाड़ा फिर से दोबारा बनाया गया जो 1344 हिजरी या 1925 ईस्वी दिसंबर महीने में बनकर तैयार होने की की बात शिलापट्ट पर पूर्ण रूप से मौजूद है उस समय बेतिया, खासकर मोहल्ला किला और जंगी मस्जिद के पीछे वाली कॉलोनी जिस पर अभी मेडिकल कॉलेज बन रहा है में शिया लोग काफी संख्या में मौजूद थे उन्हीं लोगों के लिए बेतिया राज ने यह इमामबाड़ा बनवाया था.
पूर्वजों की माने तो मेरे दादा ने इमामबाड़ा के बारे में हमें बताया था कि इस इमामबाड़े में लखनऊ की तरह
शिया लोग मातम किया करते थे इस इमामबाड़े में आग के
अंगारे पर मोहर्रम के दिनों में शिया लोगों का मातम हुआ करता था
लेकिन अब तो इस इलाके में शायद कोई भी शिया हजरात अब नहीं है
शिया लोगों की आबादी सिमटकर नया टोला में बसी हुई है मैंने 1978
तक शिया लोगों को इमामबाड़े में मोहर्रम के दिनों में मातम करते
खुद देखा है शिया लोग नया टोला से निकलकर आज भी इमामबाड़े के
सामने सड़क पर कुछ समय के लिए मातम करते हुए रुकते हैं और फिर कर्बला
चले जाते हैं लेकिन शिया लोग भले ही अब 1980 के बाद से
इमामबाड़े में आना जाना छोड़ दिया लेकिन इमामबाड़ा में आज भी मोहर्रम महीने की 1 तारीख से दसवीं तारीख तक बेतिया राज के नाम पर एक बड़ा सा ताजिया रखा जाता है जहां 1 से 10 तारीख तक
बहुत दूर-दूर से लोग यहां आते हैं इमाम हुसैन के नाम पर दिये जलाना,
दूध की शरबत बांटना आदि कार्य लोग करते आ रहे हैं.
786कता तारीख बनाए इमामबाड़ा राज वाके मुकाम बेतियाअज नतीजए फिक्रमौलाना मोहम्मद अली हाफिज साहब जज्बे हकीम आबादी छपरविहस्बे फरमाइशमौलवी सैयद अब्दुल मोईज साहब नाजिम अंजुमन मुहाफिज मुकामाते मुकद्दसा बेतियादिसंबर सन 1925इमामबाड़ा यहां का जो था कदीम व कोहन, किया था पहले महाराज ने जिसे तैयारवह इमतेदादे जमाना से हो गया कमजोर, नाली किसी ने खबर उसकी हो गयाऔर फिर यहां की अराकीन ऐ अंजुमन ने ब इजज, क्या जनाब मैनेजर से हाल सब इजहारजो राज के हैं मैनेजर जी ई रदर फोर्रड अब, हुए वह हाल से मुस्लिम के जबकि वाकिफ कारतो फिर उन्होंने दोबारा इमामबाड़ा को, बहसब अरज अराकीन करा दिया तैयारकही है जजब ने उसके बना की यह तारीख, इमामबाड़ा बेतिया हुआ है अब तैयार1344 हिजरी
इस इमामबाड़ा से उस्ताद नजर अली खान का एक गहरा रिश्ता बताया जाता है नजर अली खां बेतिया राज के सबसे खास बॉडीगार्ड थे जिन्होंने कई मौकों पर बेतिया राजा की जान बचाई थी उस्ताद नजर अली खां कई अंग्रेजों को स्वयं अपने हाथों से मौत के घाट उतारा और बेतिया राजा पर हमलावर होने वाले अंग्रेजों को भगाया कुछ लोग इस इमामबाड़े को उस्ताद नजर अली खां से भी जोड़ते हैं इसे नज़र अली खां वक़्फ़ के नाम से जोड़ते हैं, लेकिन यह भी हकीकत है कि यह इलाका शिया बहुल क्षेत्र था और बेतिया राजा ने इसे शिया लोगों के लिए ही बनवाया था इसकी गवाही और सबूत के तौर पर यह शिलापट्ट आपके सामने है.