बेतिया इमामबाड़ा उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल का इतिहास.....
बेतिया राज इमामबाड़ा इतिहास में दिसंबर 1925 कि यह बिल्डिंग है, सन जो जनवरी 1961 में उर्दू हाई स्कूल जंग़ी मस्ज़िद से इस बिल्डिंग में प्रारंभ किया गया। इस स्कूल के छात्रों में मैं भी एक छात्र रहा हूं। सन 1973 की बात है के आमना नामी छावनी की एक महिला ने छावनी में ही कुछ जमीन रजिस्ट्री कर दी और फिर यह स्कूल अपनी जमीन पर चला गया। सन 1979 की बात है..... यह बिल्डिंग खाली पड़ा रहा इस शहर में लड़कियों के लिए खासकर मुस्लिम लड़कियों के लिए कोई हाई स्कूल नहीं था। शहर के कुछ मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स ने मुस्लिम लड़कियों के लिए एक हाई स्कूल के स्थापना के सिलसिले में चिंतन करते हुए तीन दोस्त कौसर आफताब, हबीब उल्लाह खान, मीर मुशताक़ ने मिलकर इस गंभीर समस्या पर चिंतन किया और मुस्लिम लड़कियों के उच्चतर शिक्षा के लिए एक स्कूल की सोच को लेकर काम करना शुरू किया। कौसर आफताब जिन का असल नाम कौसर आलम है ने अपने दोस्तों के साथ इस गंभीर समस्या के लिए सड़क पर उतरने की बात सोची और मुस्लिम लड़कियों के लिए उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल की स्थापना के लिए निकल पड़े घर घर द्वारा हर परिवार से एक की बच्चियों के एक नए स्कूल में दाखिला कराने की एक मुहिम छेड़ दी। कुछ बुज़ुर्ग---सय्यद जानेआलम को सरपरस्त, अनवारुल हसन, अयूब साहब, अदालत हुसैन जैसे लोगो का साथ मिला और बेतिया राज इमामबाड़े में जो खाली बिल्डिंग थी उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल की बुनियाद डाल दी सन 1980 का जमाना था जनवरी महीने से इन दोस्तों ने अपनी बच्चियों एवं अपने रिश्तेदारों की लड़कियों को इस स्कूल में नामांकित कर लिया नतीजा यह निकला के पहला से ग्यारहवीं तक क्लास का संचालन शुरू कर दिया। मुफ्त में, अर्थात कम से कम पैसे में पढ़ाने के लिए महिलाओं को इस बात पर राज़ी किया कि वे लोग इन बच्चियों के उज्जवल भविष्य के लिए अपने समय का दान दें अल्पसंख्यक मुस्लिम कम से कम पैसे पर अपने बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने के लिए बटोर कर यहां लाऐ गई लड़कियों के लिए बेतिया के सबसे बड़े मोहल्ले में नजदीक का यही स्कूल जानकर लोगों ने दाखिला कराना शुरू किया इन तीन दोस्तों ने अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को बतौर टीचर इस स्कूल में पढ़ाने के लिए जमा किया जिनमें सरवरी आपा को प्रिंसिपल ,शबाना मंसुर,अनवरी बेगम,नुज़हत परवीन ,कहकशां नाहीद जिनके नाम मुझे याद आ सके हैं आदि कई लड़कियों ने इसमें पढ़ाना शुरू किया और फिर उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल धीरे धीरे मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त करते हुए आगे की ओर बढना शुरु किया। कौसर आलम उर्फ कौसर आफ़ताब ने इस स्कूल के लिए एक अच्छी लाइब्रेरी भी बनाई जिसका नाम आयशा लाइब्रेरी रखा अलमारियों में हाई स्कूल तक की बच्चियों के लिए किताबे भी जमा कर ली यह स्कूल अब भी चल रहा है लेकिन आयशा लाइब्रेरी का वजूद खत्म हो चुका है। एक कमेटी इस स्कूल को अभी सुचारू रूप से चला रही है काफी कोशिशों के बावजूद भी अब तक इस स्कूल को अपना रोल कोड अब तक नहीं मिल सका है,जिस कारण अल्पसंख्यक स्कूल का भविष्य अधर में लटका हुआ है बल्कि नई कमेटी अब तक इस स्कूल के अपने रोल कोड प्राप्त करने के प्रयास में लगी हुई है। पूरे पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया शहर में एकमात्र उर्दू गर्ल्स हाई स्कूल है जहां पर मुस्लिम बच्चियां हाई स्कूल तक की शिक्षा ग्रहण करने के लिए यहां आती हैं।
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